Tuesday, March 29, 2011

संयोग






मेरे    जिन्दगी    के    दिन    का    यह     कैसा  सफ़र है
ये      है     मेरी    फिर    भी इस पर दूसरे की नजर है
सपनों    में    आकर     उसने    मुझसे      ये कह    दिया
मेरे   जान हो   मेरे सनम   मैंने ये दिल तुझको   दिया
धुंधली      हुई       निगाहें     देखते       देखते   तेरा    पथ
साथ     दूंगी        जिन्दगी  भर  ये  खाई   मैंने     शपथ
प्यासा जैसे खोजे कुआ हालात तेरे बिन इस कदर है
जिन्दगी   है तेरी  फिर भी  इस पर  गडी मेरी नजर है 
रास्ते   में    एक    दिन    उससे       मेरी     नजर     मिली
आँखों  से  उसके ये  दिखा   जैसे  जानती   हो    वो    कली 
मुस्कान     उसके    होठों    की मेरे दिल    को   भा   गयी 
सूरत   उसकी  उसी दिन   से   मेरे  जिगर   में   छा   गयी 
बाँहों को   उसके   थाम   कर   मैंने   कहा   ये तेरा   घर है
तय हो जाएगा अब सारा सफ़र पथ में पडा जो तेरा घर है
एक दिन   गुजरा उधर   से   घर   है   उसका   जिस   गली
खिड़की   पर    थी   खडी   वो   उससे    मेरी   नजर   मिली 
शरमाई    इस कदर   जैसे     वो    हो   उस   घर  की   बहू
इस   कदर  शर्माने   की   सूरत   बसी   मेरे  दिल में हूबहू
उसके    इस    कदर  शर्माने   का   ही   ये  सारा   असर  है 
अब तो ऐसा लगता है जिन्दगी का उसके संग ही बसर है  

1 comment:

  1. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

    ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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