Sunday, January 29, 2017

मैं बनूँ संगीत तेरा






















मैं बनूँ संगीत तेरा गीत मेरे बन जाओ तुम
मीत मैं तेरा बनूँ और प्रीत मेरी बन जाओ तुम

आसमाँ के लाख तारों से हमें लेना है क्या
चाँद मैं तेरा बनूँ और चांदनी मेरी बन जाओ तुम

जश्न के किरदार हमने देख डाले हैं बहुत
दीद मैं तेरा करूँ और ईद मेरी बन जाओ तुम

हारने की कोशिशें हम पर कभी हावी जो हो
तो बनो उम्मीद तुम और जीत मेरी बन जाओ तुम

जब करे कोई भी इस दीपक के बुझने का जतन
बाती बनकर मैं रहूँ और तेल इसका बन जाओ तुम

Saturday, May 10, 2014

बहक जाते हैं






















कुछ  चीज  दूर  से  देखन  में  भली  होती  है
आग छूता है वहीँ जिसकी अंगुली न जली होती है
भटक जाता है  मुसाफिर  उस  गली  में  अक्सर
जो   उसके    लिए   अनजान  गली   होती है

लोग   अक्सर  बहक  जाते  हैं  उन  बहारों  में
जिन  बहारों  में  हजारों  ही  कली   होती   हैं
भ्रमर  अक्सर  ही  बहकते  हैं  उन्हीं कलियों पर
चमन गुलजार  में  जो  अधखिली  सी  होती  हैं

महक  का  जाल  चमन  फेका  जब फिजाओं में
हो मद में मस्त चमन  में  ही  उलझे  जाते  हैं
प्यार  का  जाल  बुना  है  गजब  शिकारी   ने
उलझ एक बार  जो  गया  तो  उलझे  जाते  हैं

                        दीपक कुमार मिश्र प्रियांश

Friday, March 7, 2014

नारी महत्ता

महिला दिवस पर कुछ लिखना चाहता था डायरी-कलम लिए बैठा था पर कुछ दिमाग में आ ही नहीं रहा था  कि क्या लिखूं | काफी देर सोचने के बाद पहली पंक्ति दिमाग में आ गयी इसके बाद क्या कलम को जबरदस्ती बंद करना पड़ा.......................



नारी  के  हजार  रूप   विद्यमान  चहुँ  ओर
नारी इस समाज की तो एक  मूल  इकाई  हैं
नारी के सम्मान में जो शीश ना झुका सका है
मूल्य  बस  उसका  तो  मात्र  एक  पाई  है

पैदा होते रानी बनी  ब्याह  होत   लक्ष्मी  वो
घर में जो काम  करी  तब  वो  बनी बाई है
कौन   कहता  है  रानी  लक्ष्मीबाई  है  नहीं
जितनी  भी  नारी  हैं  वो  सब लक्ष्मीबाई हैं

नन्द घर यशुदा  खिलाय  पालना  में  कृष्ण
अद्भुत   वात्सल्य  दृश्य  को  दिखाई   हैं
जब  मजबूर  हुई  रौद्र  रूप  दिखावन  को
तब  दुर्गा  काली  का  ये  रूप  धर आई हैं

चूर  अभिमान  उसका  हुआ  है इस धरा पे
जिसने  भी  आँख  नारी  जाति पर उठाई है
चूर  अभिमान  सारा  हो गया था रावण का
नारी  अपमान  की  तो ये भी इक गवाही है

विनती  है   इनका  न  हास-उपहास   करो
पूजन  से  इनके  ही  जग  की  भलाई  है
नारियों को पूजा गया है जहाँ भी इस जहाँ में
अपनी  दुनिया  देवता  ने वहीँ पर  बसाई है 
                         

                    दीपक कुमार मिश्र प्रियांश"

धोपाप धाम आरती




धोपाप धाम गोमती के तट पर स्थित एक घाट है जहाँ राम भगवान को स्नान करने से रावण की ह्त्या के पापों से मुक्ति मिली थी | यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस पावन धाम पर आरती लिखने का अवसर मिला | कुछ ही दिन में आपके बीच में आरती के ऑडियो और वीडिओ माँ मुक्ता फिल्म एसोसिएशन द्वारा प्रस्तुत की जायेगी |
जय श्री राम............... 


पावन धोपाप धाम , जहाँ पाप धोये राम
गोमती निशदिन पांव पखारती , कल कल ध्वनि करके आरती उतारती


तट धोपाप धाम जाकर जिसने भी डुबकी लगाया
जीवन के सारे पापों से तुरत ही मुक्ति पाया
महिमा ऋषि मुनि ने बखानी , पाप काटे यहाँ पानी
गोमती निशदिन पांव पखारती , कल कल ध्वनि करके आरती उतारती


ब्रम्ह्हत्या के पाप का डर जब श्री राम को सताया
तब विश्वामित्र गुरु ने गोमती में श्याम काग तैराया
पाप मिटेगा वहाँ पर , काग होगा श्वेत जहाँ पर
गोमती निशदिन पांव पखारती , कल कल ध्वनि करके आरती उतारती


है धोपाप धाम पावन जो आरती इसकी उतारे
हर अक्षम्य पापों से उसका जीवन तुरत उबारे
राम मुक्ति यहाँ पाए , ऐसा ऋषि मुनि यहाँ गाये
गोमती निशदिन पांव पखारती , कल कल ध्वनि करके आरती उतारती


                                    दीपक कुमार मिश्र प्रियांश
 

Sunday, March 2, 2014

मंदिर मस्जिद पर पहरे हैं
















देखो हम कहाँ से चल करके
किस दौर में आकर ठहरें हैं
खुशहाली सारी चली गयी
मंदिर मस्जिद पर पहरे हैं

ये बस्ती बनी बहेलियों की
सब ताक लगाए बैठे हैं
फ़रियाद करोगे किससे तुम
सब अपने गुरुर में ऐठे हैं

अब खडी अदालत की मूरत
रो रो कर सहमी जाती है
जब फांसी कतली ना पाए
और लुटी गरीब की थाती है

कहने को है ये प्रजातंत्र
पर तानाशाही का कोहरा है
जिस शासन को है जिम्मेदारी
वो शासन बिलकुल बहरा है

            दीपक कुमार मिश्र प्रियांश

Tuesday, November 19, 2013

अमन हमारा चमन बनेगा





















मातम   फैला   देश   में  जो  है  ये  कैसे  अब  जाएगा
भ्रष्ट   और   अत्याचारी   को   फांसी   कौन   चढ़ाएगा
पग-पग  पर  जाकर  देखो  जो  छाया  घना अन्धेरा है
इस  अंधियारे  से  भारत  को  मुक्ति  कौन  दिलाएगा

भ्रष्टाचारी    अत्याचारी    आ    जाओगे    हथकंडे   में
खैर  मनाओ  तब  तब  जब  तक  देश फंसा है पंजे में
अमन हमारा चमन बनेगा  वो  दिन   जल्दी   आयेगा
मची  गंदगी  है  जब  उसमे लाल कमल खिल जायेगा

पंजे  ने  हैं   खंजर   भोके   बहुत   मातु   के   सीने   में
बहुत बिताएं हैं दिन माँ  ने  घुट-घुट  घुटकर  जीने  में
कांग्रेस  का  हाथ  नहीं  ये  तब  आम  हाथ कहलायेगा
पकड़ उँगलियों से जब माँ के कमल चरण चढ़ जाएगा   

                                 
                         दीपक कुमार मिश्र प्रियांश

Thursday, August 8, 2013

आशिकी तो कभी कर न सकते हैं वो

वो  तो  कहते   हैं  हमको  दीवाना  मगर
खुद दीवानों सी हरकत को  करते  हैं  वो
मुझपे   मरने    का  इल्जाम  झूठा लगा
खुद से ज्यादा तो मुझ पर ही मरते हैं वो

मुख  से  कहते  हैं  हमको मोहब्बत नहीं
लाख   अरमान  फिर  भी  सजाएँ  हैं  वो
है  वजह  क्या  समझ  में  ना  आती हमें
दिल की बातें जो दिल  में  छुपायें  हैं  वो

वो  बयां  क्यूँ  मोहब्बत  को  करते  नहीं
शर्म  किस  बात  की  आज  खाते  हैं  वो
डर   उन्हें   है   जमाने   का   जकडे   हुए
बस   यहीं   एक   उलझन   बताते  हैं वो

आशिकों   को   ज़माना    बकसता  नही
इसलिए   तो   जमाने    से   डरते  हैं  वो
डर ज़माने का है  जिनके  दिल में दीपक
आशिकी  तो  कभी  कर न  सकते  हैं  वो