Wednesday, December 12, 2012

इजाजत



      मेरी यह पोस्ट १२/१२/१२ स्पेशल पोस्ट है | आज इस विशिष्ट समय पर इजाजत मांगने की इच्छा हुई तो मांग ले रहा हूँ ..............   


















तुम दो  इजाजत तो कुछ आज कह दूँ
दिल की जुबाँ से बयां  कुछ  मै कर दूँ
ये चाहत  समेटी  न अब  जा  रही है
करो हाँ , मोहब्बत  का इजहार कर  दूँ

नयनों  में  मेरे   बसी   तेरी   सूरत
तू  भी  बसा  तो  नयन  बंद  कर दू   
ये नयना भी  चाहे  इजाजत  ही  तेरी  
मिले  तो , मोहब्बत का इजहार कर दूँ

मेरे  दिल ने तेरे  ही  संग  प्रीति जोड़ी

जो तुम जोड़ दो तो जमाने से  कह  दूँ
जुड़े प्रीति तेरी  तो  मै  इस  जहाँ  से
अपनी , मोहब्बत  का  इजहार  कर दूँ

Wednesday, November 21, 2012

कसाब को एकाएक फांसी के पीछे कहीं कोई काला सच तो नहीं है ?


( यह मेरे अपने व्यक्तिगत विचार है किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए अगर है तो उनसे क्षमा प्रार्थी हूँ )
       
     २६/११ के हमले के दोषी अजमल कसाब को आज लगभग ४ साल बाद एकाएक फांसी की सजा सुनकर मन को तो बहुत सुकून मिला | फांसी दी गयी इस बात से पूरे हिन्दुस्तान नहीं अपितु पूरे विश्व के लोग खुश हुए होंगे | पता नहीं क्यूँ हमे ऐसा लग रहा है कि इसके पीछे भी कोई राज छिपा हो सकता है | बिना किसी पूर्व जानकारी के एकाएक ऐसा होना मेरे शक का कारण है |

       अभी कुछ दिन पहले ही हमारी मीडिया की ही खबर थी की जो काम हिन्दुस्तान की सरकार पिछले तीन चार सालों में नहीं कर पायी है उसे हिन्दुस्तानी मच्छरों ने कर दिखाया है | इस काम के लिए मच्छरों का शुक्रिया अदा करता हूँ | वह काम यह था कि हिन्दुस्तान की सरकार आज तक अजमल कसाब की केवल मेहमान नवाजी की थी लेकिन मच्छरों ने जब उसकी मेहमान नवाजी की तो उस सुअर को डेंगू हो गया और मरने की कगार पर पहुँच गया था | अभी तो हम इस बात का इन्तजार कर रहे थी कि हमारी बिकाऊ मीडिया अभी हमे बताएगी की कितना उसके इलाज में खर्च हुआ लेकिन उससे पहले उसकी मौत की खबर आ गयी | ऐसे में हमारे दिल में बहुत से सवाल उठे हैं | उन सवालों से अवगत कराता हूँ ......
      
        कहीं सरकार ने यह तो नहीं किया कि उसकी मौत हुई हो डेंगू से और इसके बाद उसको फांसी की सजा दिखा रही हो | अगर ऐसा नहीं है तो सरकार के फैसले में पारदर्शिता क्यूँ नहीं थी ? अभी सुबह कुछ लोगों से बात चीत के दौरान यह पता चला कि कसाब को डेंगू हुआ है यह खबर मीडिया के द्वारा फैलाई हुई अफवाह है | मुझे तो पता नहीं क्यूँ ऐसा लगता है जब भी कहीं सरकार फंस जाती है तो वह उस खबर को मीडिया की अफवाह बताने के सिवाय कोई और चारा ही नहीं रहता है | 
दूसरी बात सरकार किन गद्दारो से डरकर चुपचाप कसाब को फांसी दे दी, अगर कसाब को चौराहे पर खडा करके मारा जाता तो यह आतंकवादियो के लिये सबक का काम करता. पहले उनको खिला पिला कर मोटा मुरगा बनाओ फिर चुपचाप फांसी देना समझ मे नही आया. 
तीसरी बात भारत की जनता और 26 नवम्बर 2008 के शहीदो के परिवार कैसे इस बात पर विश्वास करे कि कसाब को वाकई फांसी हुयी है कही ऐसा न हो कि ........ जैसे सद्दाम हुसैन के विडियो अमेरिका ने सार्वजनिक करके पूरे विश्व को सन्देश दिया था कि अमेरिका से टकराने का अंजाम क्या होता है भारत सरकार ने वैसा क्यो नही किया??

       दोस्त बात कुछ भी हो लेकिन कोई राज जरूर है इस एकायक फांसी के पीछे |जैसे सारी  करतूतें एक एक कर खुली है वैसे यह भी वक्त आने पर खुलेगी |

Thursday, November 1, 2012

यहीं जानता था

                         ना   ही   तुम्हे   कल   तो  मै  जानता  था 
                         ना  ही   तुम्हे   कल   मै   पहचानता   था 
                        मिले कब  थे कैसे और किस राह पर  हम
                         न  अब   जानता  हूँ  न  कल  जानता  था 

                        सूरत   तुम्हारी  थी   मन  को  मेरे  भायी
                        तेरी   अदाएं    थी     मन    को    लुभायी
                        पहली  नजर  में  हुआ   कायल  मै   तेरा 
                        यहीं    जानता    हूँ    यहीं    जानता   था 

                        खुदा  की  थी  मर्जी   सो  उसने  मिलाया 
                        मोहब्बत   में   तेरे   वो   जीना  सिखाया 
                        था किस्मत में  लिखा खुदा  ने तुम्ही को
                        यहीं    जानता    था    यहीं    जानता   हूँ 

Monday, October 22, 2012

जय माता दी




















मईया  की  महिमा  को  हम  कैसे तुम्हे  सुनाये
सुख  सारा  वो  है  पाता  जो  दर  पे सर झुकाए 

चन्दा  सा  माँ  का  मुखडा मन के सभी को भाये 
लाली  चुनरिया  ओढकर  भक्तों को माँ लुभाए 
आँखों में लालिमा  भर  तलवार  लेकर  कर  में 
करके  सवारी  सिंह  की  दुष्टों  को   माँ   डराए 

कण  कण  में  माँ  बसी है माँ ही सुमन खिलाए 
अपना  सहारा  देकर   गिरतों   को   माँ   उठाये 
ये  आत्मा  भी  माँ   है   परमात्मा   भी   माँ   है 
सच नजर  से  देखो  तो  माँ  ही  नजर  है  आये

हमको  भी  पार  कर  दो  दर  पे  है  सर  झुकाए 
मझधार   मे   फंसा   हूँ   और   नाव   डगमगाए 
अब हम पर रहम कर दो हमको भी पार कर दो 
ममता  भरी   नजर    से   कोई  ना   छूट   पाए

मईया  की  महिमा  को  हम  कैसे तुम्हे  सुनाये
सुख सारा  वो है  पाता  जो  दर  पे  सर  झुकाए

Thursday, September 27, 2012

याद कर रहे हैं ........

तनहाइयों    में    आज    तुझे    याद   कर रहे हैं
रब   से   तुम्हारे   खातिर  फ़रियाद  कर   रहे  हैं
कभी  याद ना  किया मै  खुद  के  लिए  खुदा  को
पर   आज   तेरे   खातिर   उसे   याद   कर रहे हैं

मासूम   सी   अदा   में   तेरी   उलझे  जा  रहे  हैं
मासूमियत   तेरी   हम   रब   से   बता   रहे   हैं
करूँ  शुक्रिया  अदा  मै   तेरी  भोली सी अदा को
तेरी  अदा  की  जद  में   रब   को   बुला   रहे  हैं

सूरत   को   तेरी   दिल   से   ना   भूल  पा रहे हैं
हर  कोशिशों  में   खुद  को  असमर्थ  पा   रहे  हैं
सूरत निकालो अपनी मेरे दिल के इस महल से
एहसान इतना करने  की  फ़रियाद  कर  रहे   हैं

Sunday, September 23, 2012

बात कुछ हो गयी


नजर  उनसे  जो मिली बात कुछ हो गयी
चैन  मेरा   गया  नीद  मेरी   खो  गयी

    नज़रों से उसने जादू  क्या किया
    दिल  मेरा  उसका पीछा  किया

चली  वो  चली  गयी  नीद  मेरी ले गयी
चैन   मेरा   गया  नीद  मेरी  खो  गयी

    मुस्कान उसकी जा दिल में धंसी
    दिल  मेरा  सोचा  अब वो फंसी

फिसल वो फिसल गयी याद अपनी दे गयी
चैन  मेरा  गया  नीद   मेरी   खो  गयी

    नज़रों से लगती थी जैसे परी 
    मुझको तो लगती थी जादूगरी

जादू टोना कर गयी दिल वो मेरा ले  गयी
चैन  मेरा  गया  नीद   मेरी   खो  गयी 

Tuesday, September 18, 2012

कब तक हम शांत हो

कब तक ऑंखें ही नाम  करके हम शांत हो
क्या  हमे  जीने   का   हक   नहीं   है   यहाँ
क्यूँ   नहीं   सुन   रहा   कोई   आवाज   को
बोलने   का   हक   हमे   क्या   नहीं है यहाँ

कल   पढ़ा   था  हर  कोई  यहाँ  आजाद  है
था  जहाँ  ये  लिखा  वो   संविधान  है कहाँ
बोलने की सजा  अब  तो  मौत  मिल  रही
न्यायदाता    धरा    से    गए    अब   कहाँ

दर्द   माँ   के    शहीदों   का   वो  जाने क्या
जिसने  गीदड    ही   पैदा   किये   है   यहाँ
लाल  अपना   जो   खोते   तो   वो  जानते
लाल   खोके     माँ   कैसे   है   ज़िंदा   यहाँ 

Wednesday, September 12, 2012

उसकी सूरत पर


     जिसके लिए लिखा है काश उसके पास तक पहुच जाए | वैसे ब्लॉग पर बहुत दिन बाद आ रहा हूँ आता तो नहीं लेकिन किसी की खूबसूरती का बखान करने से खुद को रोक नहीं पाया इसलिए आ गया हूँ और हाँ अगर वो नजर के सामने से गुजरती रहेगी तो आता रहूँगा | 




              
















तुम तो हो रूप की मलिका तुम्हे अब नाम मै क्या दूँ
ज़माना  जद  में  हैं  तेरे  तुम्हे  आराम  मै   क्या   दूँ  
लव से तेरे लिए अब तो मै कुछ भी कह नहीं  सकता  
तुम्हारे  चाँद  से  तन को  मै  उपमा  और   कैसी  दूँ

खुदा ने जिस घडी तेरे तन की  नक्कासी  करी होगी  
घड़ी  वो  इस  जहाँ  खातिर  बड़ी  ही  शुभ रही  होगी 
खुदा खुद खुश हुआ होगा  जहाँ  में तुझको ला करके  
सुंदरता  से  तेरे  उसको  जलन  अब  हो  रही   होगी

नजर  जब  से पडी  तुझ  पर हुआ है हाल  कुछ ऐसा  
नजर  जब  भी  जिधर  डालूँ  दिखे कोई तेरे ही जैसा
मेरी  तुम  इस  शरारत  को  शरारत  नाम  ना   देना
मचल   कोई    भी   जायेगा  तुम्हारा   रूप   है  ऐसा

Sunday, June 17, 2012

दोस्तों के नाम

दोस्ती  के  नाम  पर   अभिमान  करना सीख लो
दोस्ती  लेती   है   जान   जान    देना    सीख  लो
आसान  होता  निभाना  तो करोड़ों में दोस्त होते 
रिश्ता बड़ा अनमोल है दिल से निभाना सीख लो


            बस    साथ    चाहता    हूँ    तेरा
            मै     और   नहीं   कुछ   चाहूँगा
            साँस   रहे  जब   तक   तन   में
            तेरे   संग   ही   रहना     चाहूंगा

            यादें     हैं   तुझसे   जुडी   लाख
            बीते  हैं  कई   दिन   तेरे   साथ
            फरमाइश  है  बस  एक  तुमसे 
            तू  चलना    मेरा    पकड़   हाथ

            आपस  में  लड़ाई   कर   करके
            चलते    थे   राह   बदल  करके
            जैसे  ही  कुछ  दिन   बीत  गये                                               
            तब मिलते गले हम हंस करके

            जब   मूड  में  मस्ती  के   होते
            हर   लड़की   को  भाभी  कहते
            कहते  वो  देख  गजब  की    है
            पीछा    करने   से   ना   थकते

            शर्त     लगाना     आपस     में
            किसी लड़की से करने की बात
            इक   बड़ी   हिदायत   देते    थे
            ना आना खा करके  तुम  लात 

                                       दीपक कुमार मिश्र "प्रियांश"

Thursday, May 31, 2012

दीप दोहावली (प्रथम)

कांटे  मिलई  हर  राह  में,  देहि   बहुत बिधि पीर |
झेलत   जे   चलि   जात  है ,     पाछे   पावै   हीर ||१||

दीमक   के  जे  वास  दे ,  करहिं   आपना   नाश |
दीमक  के  बसि  जाये से , मिले न सुख के सास ||२||

अब  तो  साधु  स्वार्थ  बस,   देत   फिरे   उपदेश |
स्वार्थ    के     साधे    बिनु,    साधु   चले   प्रदेश  ||३||

मातु  पिता  गुरु  सेवा के, फल काटे कष्ट हजार |
तीनहुं  के   जो   सेवत  है,   तरी   जाता   संसार ||४||

जे  जग  के  सेवक  बने,  आपन  करहिं   सुधार |
सुधरत  तोहके  देखि   के,   सुधरे   लोग   हजार ||५||

दीपक  खुद  के  जारि  के,   सबके   देत   प्रकाश |
नीचे  कालिख  देख   के ,  दीप   न   होत   उदास ||६||

शीतल या फिर उबलत जल,  आगी  देत  बुझाय |
जीवन  के  सुख  दुःख में , नाही  छोड्यो  सुभाय ||७||

दीपक  के  जरि   जाये   से,   भागे   दूर   अन्हार |
दीपक  के  छुई   जाये   से,   नाही   बचे   ओसार ||८||

लागी प्रीत न छूटई , बिनु  प्रिया  कुछ  न बुझाई |
दीपक  प्रिया  के  बिनु,  मोहे   कुछ   ना   सुहाई ||९||

आपन  स्वार्थ  साधे  बिनु,  बोलई  सब चुचलाय |
स्वार्थ  सीधा   होत   ही,   सबहिं   जाय   भुलाय ||१०||

स्वार्थ  के   इ   दुनिया,   स्वार्थ   के   सब   साथ |
स्वार्थ  के  डग  छूटते ,   रही   जाई   खली  हाथ ||११||

एहिं   संसार   में   मिलई,  सुख  में  साथी हजार |
लागी   बरई   घर  आपना, केहु  ना  लगी  गुहार ||१२||

कचड़ा भी माटी मिलई, यह  तन  भी मिल जाय |
काम करइ कुछ ऐसनई ,नाम चालत चली जाय ||१३||

सुख दुःख अइसन साथ है, एक  आवई एक जाई |
सुख दुःख में जे सम रही, उ  सज्जन  कही  जाई ||१४||

काम न कुछ अइसन करई, जग बोलई गरियाय |
केहूँ  के  कुछ एस न   करई,  उ  रोवई  विललाय ||१५||

Thursday, May 10, 2012

शिरडी के साईं बाबा


                                     इस पद्य का  कौवाली के रूप में गायन किया जा सकता है



                                            साईं  का  धाम  पावन  चलो शीश झुकाएं
                                            साईं    हैं   बड़े    दानी   साईं   को  मनाये

                                            साईं   के   दर   से   कोई   खाली ना लौटा
                                            चाहे    बड़ा    हो     या  चाहे    हो    छोटा
                                            नगरी है पावन साईं की चलो शीश झुकाएं
                                            साईं   हैं   बड़े   दानी   साईं   को    मनाये

                                            मजहब     धर्म   नहीं   बाबा  को   भाया
                                            बाबा    ने    सबको    गले    से    लगाया
                                            शिरडी के धाम चल के चलो शीश झुकाए
                                            साईं   हैं   बड़े   दानी    साईं   को   मनाये

                                            उदिया   जो  दर  की  है  तन  पर लगाया
                                            उस  तन  का  दुःख   तूने  खुद में बसाया
                                            दीपक  भी  आज  अर्जी तेरे दर पे लगाये
                                            साईं   हैं   बड़े   दानी   साईं   को    मनाये 

                                            साईं  का  धाम  पावन  चलो शीश झुकाएं
                                            साईं    हैं   बड़े    दानी   साईं   को  मनाये

Monday, May 7, 2012

मेरी तन्हाई और तेरी याद

मेरी  तन्हाई  से तेरी याद का है क्या लेना
हुआ जब भी मै तनहा तो ये चली जाती है

जिंदगी के सफ़र में जब भी अकेले निकला
साथ  देने  क्यूँ  चुपके  से  ये  चली आती है

मेरी  यादें  तेरी  तन्हाई  भी  मिटाती  क्या
जिस तरह तेरी  याद  मेरी  मिटा  जाती  है

मेरी  यादें   गर   काट  दे   तेरी  तन्हाई  को
तो  दिल  के  मुल्क में ये प्रीत कही जाती है

हुई  वर्षा  बहुत  इस   जलते हुए दीपक पर
बुझी  फिर  भी  नहीं  जो  तेरी  प्रेम बाती है

एक  दूजे  की  याद  है  अपने  सच्चे  साथी
जिन्दगी में  जो कदम से कदम मिलाती है  

Friday, May 4, 2012

मोहब्बत कि सजा

प्रिया  कि  प्रीति  में  हमने  सजा  क्या  खूब  पाई है 
मिलन  इक  पल  का  था केवल और लंबी जुदाई है 
रूमानी   गीत   मेरे   लब   अगर छेड़े  तो ये समझो 
प्रिया  की  प्यारी  सूरत  दिल में मेरे  ली अंगडाई है 

प्रिया  की  प्रीति  में  जब  भी  मै कोई रात जगता हूँ 
तभी उस रात की तन्हाई पर  कविता  मै  करता  हूँ 
कोई  सुनना  जो  चाहे  इन  तरानों  का  मेरे कारण
तो  बस दिल से जुदाई को ही मै कारण समझता हूँ 

तराने   है   मेरे   तुमसे   तरानों   में   मेरे   हो  तुम 
मेरी  आवाज  है  तुमसे  मेरी  आवाज  में  हो   तुम 
मोह्ब्बत है मुझे  तुमसे  और  मेरी  मोहब्बत  तुम 
दिलों में हो हमेशा तुम ठीक हो गर समझ लो तुम 

Thursday, April 26, 2012

जवाब चाहता हूँ

     आज हमारे समाज में तरह तरह के भेदभाव व्याप्त हैं | क्या हम लोगों ने कभी सोचा जो इस संसार में कुदरत की बनाई हुई चीज  है वो कभी किसी के साथ कोई भेदभाव करती है ? अगर कुदरती चीजें कोई भेदभाव नहीं करती हैं तो हम भी तो उसी कुदरत के बनाये हुए हैं तो हम भेदभाव क्यूँ करते हैं ? अगर इस सवाल का जवाब किसी के पास हो तो कृपा करके  वो मुझे सुझाये  और अगर न हो तो वो इस दुनिया से भेदभाव को मिटाने में मदद करे |
    क्या कभी सुरज ने किसी से  कहा कि तुम मेरी रोशनी के काबिल नहीं हो तो मै तुम्हे  रोशनी नहीं दूंगा? क्या कभी नदी किसी प्यासे को अपना पानी पीने के लिए मन किया ? क्या कभी वृक्ष ने किसी पथिक को अपने छाया में विश्राम ना करने को कहा ? क्या कभी किसी फूल ने कहा कि मै तुम्हे सुगंध नहीं दूंगा ? क्या कभी हवा ने किसी को शीतलता देने से मना किया है? हमारे अनुसार सारे सवालों का जवाब एक अक्षर न होगा | जब कुदरत कि बनाई हुई कोई भी चीज भेदभाव नहीं कर रही है तो हम क्यूँ कर रहे  हैं ?





                                          नहीं भेद करती  जब  सूरज   कि  रश्मि 
                                          नहीं   भेद   करती   जब    बहती  हवाएं  
                                          तो   है   भेद   क्यूँ   ये   हमारे   दिलों  में  
                                          कोई   आज    आकर   मुझे   ये   बताये 

                                          घटा  भी  बरसती  है  समता से  सब पर
                                          महक  भी  सुमन  की  सभी  को  लुभाए
                                          तो  फिर हम बटें क्यूँ हैं मजहब धरम में  
                                          कोई    आज    आकर   मुझे   ये   बताये
                                         
                                          ये   चंदा  और  तारे  चमकते  सभी  बिन  
                                          और  पंछी  का  कलरव  सभी  को लुभाए
                                          तो  है  भेद  काले  और  गोरे  का  क्यूँ   ये  
                                          कोई   आज    आकर    मुझे    ये   बताये 

                                           कुदरत    कभी  भेद   करती    न  हम  में  
                                           तो   हम   भी  उसी   रीति  को  ही निभाए 
                                           न   मेरी   न  तेरी  ये  सब की   है   धरती 
                                           आओ   संग   मिलकर   यही   गीत   गायें