Saturday, December 18, 2010

समेस्टर के दिनों में


      एक दिन के आई टी  में मौसम कुछ अजीब सा ऐसा छाया,
      एहसास     हुआ    सबको     ऐसा   जैसा     समेस्टर     हो      आया |
            शांत हुई चिल्लम-चिल्ली सब बुक की भाषा  बोल रहे ,
              हाथ    में     लेकर  रफ    कॉपी टीचर की  केबिन     दोल रहे |
     दस दिन जब केवल शेष रहे तब टीचर की बोली मन भाया
      एहसास हुआ ...................................................................................
              कैंटीन में बैठ के गप्प लड़ाना अब किसी के मन को न भाये
               क्या किया    समेस्टर भर ये     सोच के  आँखों में आशु आये |  
    गर्लफ्रेंड के संग में समय बिताना अब तो मुझे राश नही आया
    एहसास हुआ .......................................................................................
             पहले तो होड़ लगी    रहती     थी lecture    को     बंक     मारने में
             अब तो दिन बीत रहे है फोटो कॉपी शॉप पे नोट्स तलाशने में |
   नोट्स है कैसा पंछी ये समेस्टर आने पे समझ आया
   एहसास हुआ ....................................................................
            ऐ खुदा दुआ मेरी सुन ले समेस्टर को दूर भगा दे तू
           पुरे कॉलेज के हिस्से का लड्डू मुझसे चढवा ले  तू |
  याद नही किया कभी ऐसे में तू  ही  याद आया
   एहसास हुआ .........................................................
           टीचर  दे दे एक्साम मेरा  मन मेरा हरदम सोचे यही
            यह बात असम्भव थी इसलिए इसे कह दिया यूँही |
  क्या होती है पढाई चंचल ये सर को देख समझ आया
  एहसास हुआ .................................................... ...............