क्या मै अपनी मोहब्बत के काबिल नहीं
गर हूँ तो वो मुझे क्यूँ हासिल नहीं
जिसके आगोश हरदम खोया रहा
जिसके बाँहों में मै हरदम सोया रहा
साथ चलने से मिलती थी जिसके ख़ुशी
वह ही मेरी जिंदगी का तो कातिल नहीं
सूझता कुछ नहीं आज मै क्या करूँ
पागलों की तरह बस भटकता फिरूं
जिन्दगी के समुंदर में भटका हूँ मै
अब मै जाउ कहाँ जब मेरा साहिल नहीं
जो थी मुस्कान मेरी आज वो छिन गयी
संग हँसी के मेरी जान क्यूँ निकल ना गयी
सूना करके तू क्यूँ गयी मेरा चमन
तेरे बिना हसती मेरी महफ़िल नहीं
तुम न दोषी अकेले हो मेरे सनम
दोष में भागी है कुछ मेरे भी करम
तेरा गुनाह क्या है मेरा गुनाह ये है
बिन तुम्हारे मानता क्यूँ मेरा दिल नहीं
लग रहे है सब पत्थर कोई नरम दिल नहीं
क्यूंकि मेरी मोहब्बत अब मुझे मुव्वकिल नहीं