इस पद्य का कौवाली के रूप में गायन किया जा सकता है
साईं का धाम पावन चलो शीश झुकाएं
साईं हैं बड़े दानी साईं को मनाये
साईं के दर से कोई खाली ना लौटा
चाहे बड़ा हो या चाहे हो छोटा
नगरी है पावन साईं की चलो शीश झुकाएं
साईं हैं बड़े दानी साईं को मनाये
मजहब धर्म नहीं बाबा को भाया
बाबा ने सबको गले से लगाया
शिरडी के धाम चल के चलो शीश झुकाए
साईं हैं बड़े दानी साईं को मनाये
उदिया जो दर की है तन पर लगाया
उस तन का दुःख तूने खुद में बसाया
दीपक भी आज अर्जी तेरे दर पे लगाये
साईं हैं बड़े दानी साईं को मनाये
साईं का धाम पावन चलो शीश झुकाएं
साईं हैं बड़े दानी साईं को मनाये
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
शिरडी के धाम चल के चलो शीश झुकाए
ReplyDeleteसाईं हैं बड़े दानी साईं को मनाये
.........sach kaha aapne deepak bhai