Tuesday, March 27, 2012

सरस्वती वंदना

तेरी ममता के मंदिर का पुजारी  मै बना हूँ माँ
दृष्टि  ममतामयी  अपनी  बनाये सर्वदा रखना
कभी जो भूल हो मुझसे कोई जाने अनजाने में
तो ऐसे बिषम क्षण में जुबाँ पर  वास माँ करना

सोते को जगा दे जो छंद  में  ऐसी  शक्ति दो
दुखों से भागते हैं जो उन्हें लादने की शक्ति दो
साया अज्ञान को जो छाया है चरों तरफ जग में
फैलाकर ज्ञान की रश्मि  मुक्ति अज्ञानता से दो

कदम जब एक  चलते हैं  बदलती है यहाँ बानी
तीन पग और जब जोड़ो बदल देता है रूख पानी
विविधताये बहुत  सी हैं  मेरे भारत के दामन में
विविधता में अविविधता को बनाये रखना माँ धानी

करे सम्मान  सब  सबका  घृणा की भावना न हो
बने सब  स्वाभिमानी  भाव न ये कम नहीं करना
कभी  जो  हो  जरुरत  देश पर बलिदान होने की
बलि  लाखों  चढाने  जाये  ऐसे  वीर  माँ देना 


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