Friday, May 4, 2012

मोहब्बत कि सजा

प्रिया  कि  प्रीति  में  हमने  सजा  क्या  खूब  पाई है 
मिलन  इक  पल  का  था केवल और लंबी जुदाई है 
रूमानी   गीत   मेरे   लब   अगर छेड़े  तो ये समझो 
प्रिया  की  प्यारी  सूरत  दिल में मेरे  ली अंगडाई है 

प्रिया  की  प्रीति  में  जब  भी  मै कोई रात जगता हूँ 
तभी उस रात की तन्हाई पर  कविता  मै  करता  हूँ 
कोई  सुनना  जो  चाहे  इन  तरानों  का  मेरे कारण
तो  बस दिल से जुदाई को ही मै कारण समझता हूँ 

तराने   है   मेरे   तुमसे   तरानों   में   मेरे   हो  तुम 
मेरी  आवाज  है  तुमसे  मेरी  आवाज  में  हो   तुम 
मोह्ब्बत है मुझे  तुमसे  और  मेरी  मोहब्बत  तुम 
दिलों में हो हमेशा तुम ठीक हो गर समझ लो तुम 

3 comments:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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