Thursday, May 31, 2012

दीप दोहावली (प्रथम)

कांटे  मिलई  हर  राह  में,  देहि   बहुत बिधि पीर |
झेलत   जे   चलि   जात  है ,     पाछे   पावै   हीर ||१||

दीमक   के  जे  वास  दे ,  करहिं   आपना   नाश |
दीमक  के  बसि  जाये से , मिले न सुख के सास ||२||

अब  तो  साधु  स्वार्थ  बस,   देत   फिरे   उपदेश |
स्वार्थ    के     साधे    बिनु,    साधु   चले   प्रदेश  ||३||

मातु  पिता  गुरु  सेवा के, फल काटे कष्ट हजार |
तीनहुं  के   जो   सेवत  है,   तरी   जाता   संसार ||४||

जे  जग  के  सेवक  बने,  आपन  करहिं   सुधार |
सुधरत  तोहके  देखि   के,   सुधरे   लोग   हजार ||५||

दीपक  खुद  के  जारि  के,   सबके   देत   प्रकाश |
नीचे  कालिख  देख   के ,  दीप   न   होत   उदास ||६||

शीतल या फिर उबलत जल,  आगी  देत  बुझाय |
जीवन  के  सुख  दुःख में , नाही  छोड्यो  सुभाय ||७||

दीपक  के  जरि   जाये   से,   भागे   दूर   अन्हार |
दीपक  के  छुई   जाये   से,   नाही   बचे   ओसार ||८||

लागी प्रीत न छूटई , बिनु  प्रिया  कुछ  न बुझाई |
दीपक  प्रिया  के  बिनु,  मोहे   कुछ   ना   सुहाई ||९||

आपन  स्वार्थ  साधे  बिनु,  बोलई  सब चुचलाय |
स्वार्थ  सीधा   होत   ही,   सबहिं   जाय   भुलाय ||१०||

स्वार्थ  के   इ   दुनिया,   स्वार्थ   के   सब   साथ |
स्वार्थ  के  डग  छूटते ,   रही   जाई   खली  हाथ ||११||

एहिं   संसार   में   मिलई,  सुख  में  साथी हजार |
लागी   बरई   घर  आपना, केहु  ना  लगी  गुहार ||१२||

कचड़ा भी माटी मिलई, यह  तन  भी मिल जाय |
काम करइ कुछ ऐसनई ,नाम चालत चली जाय ||१३||

सुख दुःख अइसन साथ है, एक  आवई एक जाई |
सुख दुःख में जे सम रही, उ  सज्जन  कही  जाई ||१४||

काम न कुछ अइसन करई, जग बोलई गरियाय |
केहूँ  के  कुछ एस न   करई,  उ  रोवई  विललाय ||१५||

2 comments:

  1. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  2. शानदार दोहे लिखे है दीपक भाई

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