Monday, June 6, 2011

टूटे दिल की आवाज

क्या मै अपनी मोहब्बत के काबिल नहीं
गर हूँ    तो   वो  मुझे  क्यूँ हासिल नहीं

जिसके   आगोश   हरदम   खोया   रहा
जिसके   बाँहों   में  मै  हरदम सोया रहा
साथ चलने से मिलती थी जिसके ख़ुशी 
वह ही मेरी जिंदगी का तो कातिल नहीं

सूझता  कुछ  नहीं  आज  मै  क्या करूँ 
पागलों  की  तरह  बस  भटकता  फिरूं
जिन्दगी  के  समुंदर  में  भटका  हूँ  मै 
अब मै जाउ कहाँ जब मेरा साहिल नहीं

जो थी मुस्कान मेरी आज वो छिन गयी
संग हँसी के मेरी जान क्यूँ निकल ना गयी
 सूना  करके  तू  क्यूँ  गयी  मेरा  चमन 
तेरे  बिना  हसती  मेरी  महफ़िल   नहीं 

तुम  न  दोषी  अकेले   हो   मेरे  सनम
दोष में  भागी  है  कुछ  मेरे  भी  करम
तेरा   गुनाह  क्या  है  मेरा  गुनाह ये है
बिन तुम्हारे मानता क्यूँ मेरा दिल नहीं 

लग रहे है सब पत्थर कोई नरम  दिल नहीं
क्यूंकि मेरी मोहब्बत अब मुझे  मुव्वकिल नहीं 

3 comments:

  1. क्या मै अपनी मोहब्बत के काबिल नहीं
    गर हूँ तो वो मुझे क्यूँ हासिल नहीं
    एक से बढ़कर एक
    ...बहुत खूब कहा है आपने

    ReplyDelete
  2. सुन्‍दर शब्‍दों के साथ भावों का बेहतरीन संयोजन ...।

    ReplyDelete
  3. मन के भावों बड़ा ही सुन्दर शाब्दिक रूप दिया है।

    ReplyDelete