Saturday, May 14, 2011

मोहब्बत का अंदाज

यूँ तो अनजानों से मिलाने का अंदाज अजब का होता है
जाने क्यूँ कोई  अपना बनकर अपनों से जुदा ही होता है
             ना करना प्यार मोहब्बत यारा
            ये   चीज   गजब   की  होती  है
            तन्हाई   में      रोते     हैं     तब
            जब    उनसे    जुदाई  होती    है
उस  लम्बी  जुदाई  में  रोने  का अंदाज निराला होता है

जाने क्यूँ कोई अपना बनकर अपनों से जुदा ही होता है
             ये खुदा तेरे दरबार  में  मै  एक
             अरजी   लगाऊँ  सबके के लिए
             मौत देना पहले फिर देना जुदाई
             रोये   न  जिससे  सदा  के  लिए
वरना पीते गम के घूंटों को जैसे जाम का प्याला होता  है 
जाने क्यूँ कोई  अपना  बनकर अपनों से जुदा ही होता है
             क्या   चीज  मोहब्बत  होती है
             इसकी   परिभाषा   न    जानू
            फिर  उस  गोरी  सी  प्रिया  को
            मै  अपनी  मोहब्बत  क्यूँ मानूं
मौन मोहब्बत  की  भाषा  का  हर  कोई  मारा  होता  है 
जाने क्यूँ कोई अपना बनकर अपनों से जुदा ही होता है

6 comments:

  1. मौन मोहब्बत की भाषा का हर कोई मारा होता है

    बहुत खूब चंचल जी

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  2. चंचल जी क्रप्या वर्ड वेरिफिकेशन हटा ले
    टिप्पणी करने में दिक्कत होती है

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  3. muhabat karne wale hamesa gam ko hi peeten hai...

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  5. वाह ! चंचल जी,
    इस कविता का तो जवाब नहीं !

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  6. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.

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