Sunday, March 2, 2014

मंदिर मस्जिद पर पहरे हैं
















देखो हम कहाँ से चल करके
किस दौर में आकर ठहरें हैं
खुशहाली सारी चली गयी
मंदिर मस्जिद पर पहरे हैं

ये बस्ती बनी बहेलियों की
सब ताक लगाए बैठे हैं
फ़रियाद करोगे किससे तुम
सब अपने गुरुर में ऐठे हैं

अब खडी अदालत की मूरत
रो रो कर सहमी जाती है
जब फांसी कतली ना पाए
और लुटी गरीब की थाती है

कहने को है ये प्रजातंत्र
पर तानाशाही का कोहरा है
जिस शासन को है जिम्मेदारी
वो शासन बिलकुल बहरा है

            दीपक कुमार मिश्र प्रियांश

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