Thursday, August 8, 2013

आशिकी तो कभी कर न सकते हैं वो

वो  तो  कहते   हैं  हमको  दीवाना  मगर
खुद दीवानों सी हरकत को  करते  हैं  वो
मुझपे   मरने    का  इल्जाम  झूठा लगा
खुद से ज्यादा तो मुझ पर ही मरते हैं वो

मुख  से  कहते  हैं  हमको मोहब्बत नहीं
लाख   अरमान  फिर  भी  सजाएँ  हैं  वो
है  वजह  क्या  समझ  में  ना  आती हमें
दिल की बातें जो दिल  में  छुपायें  हैं  वो

वो  बयां  क्यूँ  मोहब्बत  को  करते  नहीं
शर्म  किस  बात  की  आज  खाते  हैं  वो
डर   उन्हें   है   जमाने   का   जकडे   हुए
बस   यहीं   एक   उलझन   बताते  हैं वो

आशिकों   को   ज़माना    बकसता  नही
इसलिए   तो   जमाने    से   डरते  हैं  वो
डर ज़माने का है  जिनके  दिल में दीपक
आशिकी  तो  कभी  कर न  सकते  हैं  वो  

2 comments:

  1. बहुत खूब!!! किन्तु एक गलती है कृपया सुधार लें
    आशिकों को ज़माना बकसता की जगह "बख़्शता" कर लें :)उम्मीद है आप अन्यथा न लेंगे। शुभकामनायें.

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  2. bahut sundar, sagar ki ghrai ke sman is kvita mean bauh dard chupa hai jo ki smran krne ke bad hume kdm aage bdane ke liye prerda deti hai...........

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