Tuesday, March 8, 2011

कडुवा सच


 


अपने दिल की बातों को
मै आज नहीं क्यूँ कह पाया 
सुलझा हुआ इन्सान हूँ मै 
फिर भी मै खुद पे चिल्लाया  

कई दिनों के बाद मै जब
 अपनी दिनचर्या में लौटा
 जो कहा सूनी की सब ने
 वो मेरे मन को ना भय 

चिल्लाने का जो कारण था
मै बात नहीं सुन पाता था 
गलती तो सारी मेरी थी 
इसलिए मुझे रोना आया  

इस दिन की जब शुरुआत हुई
 तब भी डर मेरे मन में था
 दिल शिशक शिशक कर रोया तब
 जब कडुवा सच सच हो आया

प्रक्रितक आपदा में था मै
 जिस पर ना मेरा काबू था
मै कहना चाहा ये सब से
 कहने में ये सब शरमाया

मै वक़्त चाहता सब से कुछ
 मै कहने में कुछ सकुचाया
मैंने जिससे ये बात कही
उनसे कुछ हक़ में मेरे आया

कुछ ने तो बातें ऐसे की 
जैसे उनसे ना कोई नाता हो
बातें जिसने मेरे मन की
उनसे दिल खुशी बहुत पाया  

खुश रखना चाहूं मै सबको
 पर खुश ना कोई आज मुझसे
 संग ना हो ऐसा और किसी के
 जो मेरे संग हो आया

सुलझा हुआ इन्सान हूँ मै 
फिर भी मै खुद पे चिल्लाया  

3 comments:

  1. dil ke bhojh ko kavita me achchhe se utara hai tumne
    is masoom si kavita ke liye shubhkamnaye


    aarzoodeepaksaini.blogspot.com

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