Thursday, March 10, 2011

दीवानगी




तुझे देखा है जब भी एक बात किया मन से
खुदा अब न तड़पा जान ले ले तू इस तन से
ना जाने किस बात से तुमने संग मेरा छोड़ा
छोड़ के मेरा दामन जा लिपटी दूसरे के तन से


         तुम आज भी वो हो मेरे लिए
         जो तुम कल मेरे  खातिर थी
        जब दिया था दिल मैंने तुझको
        तब तुम ना इतनी शातिर थी

        होप्रिया तुम्ही मेरे दिल की
        मुझे और कोई अब ना भाए
        जब शुरू हुई ये प्रेमकथा
       ना हम थे ना तुम माहिर थी

        जब दिया था दिल मैंने तुझको
        तब तुम ना इतनी शातिर थी

        श्रद्धा से  पूजी तू मुझको
       आश्था लगाई थी मुझमे
      था तुझे तोडना दिल मेरा
      तब तुम क्यूँ ऐसा करती थी

       जब दिया था दिल मैंने तुझको
       तब तुम ना इतनी शातिर थी


       प्यार नहीं है खेल कोई
       सब नहीं निभा पाते इसको
       जब संग नहीं चल सकती थी
       तब पहले क्यूँ मुझ पर मरती थी


       जब दिया था दिल मैंने तुझको
       तब तुम ना इतनी शातिर थी

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति | धन्यवाद|

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