Wednesday, April 10, 2013

रुसवाई

















उम्र  रपता  तुम्हारे  बिन  अब  हम कैसे गुजारेंगे
भुलाना भी जो  चाहेंगे  तब  भी  ना  भूल पाएंगे
सजा  कैसी  दिया  तुमने  मुझे  मेरी वफाई का
रहें महफ़िल में या तनहा तुम्हें ही बस पुकारेंगे


सुमन  कोई  खिला  देखूं तो तुम ही याद आते हो
मेरी  यादों  में  आकर के बहुत हमको सताते हो
किया  रुसवा  जमाने ने हमे तुमसे तुम्हें हमसे
सही ना जाए रुसवाई  तुम्ही बस याद आते हो


चांदनी  रात  में  जब चाँद को हंसता हुआ देखूं
तुम्हारी याद आने से तो दिल को कैसे मै रोकूँ
समन्दर में उठी लहरें मुझे भरमा रहीं हैं अब
खडा मै हूँ किनारे पर मगर जल में तुझे देखूं 

2 comments:

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  2. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

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