Tuesday, April 10, 2012

मेरे आसूं

मेरी आसूं की कीमत को अगर पहचान  जाती  तुम
कभी मुझको रुलाने की फिर तुम जुर्रत नहीं करती
जिन  मासूम  सी  आँखों  में  हरदम प्यार  रहता है
तो  उसमे  आसुओं को लाने की हरकत नहीं  करती

मेरी   खामोशियों  को तुम  अगर पहचान जाती तो
तो  दिल  में घाव करने में कभी मरहम नहीं बनती
मैंने  छोड़ी  खुशी  कितनी  तेरे  मुस्कान के खातिर
समझ  जाती  तो  कोरे दामन को  मैला नही करती

अपने  वादे  और  कसमे  अगर  तुम भूल जाती हो
तो  झूठे  कसमे  वादों  की  कभी बरसात ना करना
अगर  कुछ  हो  सके तुमसे तो मेरा काम ये करना
कभी  अपने  लबों  से  तुम  मुझे  न  बेवफा कहना 

2 comments:

  1. Replies
    1. मुकेश भाई आपको बहुत बहुत धन्यवाद........

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