दौर संकट का जब आया समझ में बात ये आयी
जवानी के नशे में हम बहुत से दिन गँवा बैठे
वतन खतरे में है अब जाग जाओ हिन्दोस्तां वालों
तबाही रोक न पाओगे अब खामोश जो बैठे
सुरक्षित खुद नहीं है जो हमारी क्या करेंगे वो
पेट जिनका सदा खाली हमारा क्या भरेंगे वो
खुद्दारी जो वतन के संग कभी भी कर नहीं पाए
जरुरत पड़ने पर यारों हमारी क्या करेंगे वो
समय अब न रहा है आईना बनकर के रहने की
बना लो पत्थर अब खुद को नहीं तो तोड़ देंगे ये
बचा डायर नहीं लन्दन में जो छिप कर के बैठा था
समझ आता नहीं दिल्ली में कैसे बच गए हैं ये
जागो अब लाल भारत के माँ अब तुझको पुकारे है
माँ की इज्जत लगी है दांव अब वो तेरे सहारे है
गले में फंदा अब डालो जो भी माँ के बहशी हैं
तभी माता तुम्हे प्यारी और तुम माता के प्यारे हो
उत्तम रचना||
ReplyDeleteलेखनी को रुकने ने देना एवं विचारों को और पैना करना||
आशीष|
शुभमस्तु||
जय माँ भारती||
धन्यवाद
Deleteनहीं रूकेगी ..........