मईया की महिमा को हम कैसे तुम्हे सुनाये
सुख सारा वो है पाता जो दर पे सर झुकाए
चन्दा सा माँ का मुखडा मन के सभी को भाये
लाली चुनरिया ओढकर भक्तों को माँ लुभाए
आँखों में लालिमा भर तलवार लेकर कर में
करके सवारी सिंह की दुष्टों को माँ डराए
कण कण में माँ बसी है माँ ही सुमन खिलाए
अपना सहारा देकर गिरतों को माँ उठाये
अपना सहारा देकर गिरतों को माँ उठाये
ये आत्मा भी माँ है परमात्मा भी माँ है
सच नजर से देखो तो माँ ही नजर है आये
हमको भी पार कर दो दर पे है सर झुकाए
मझधार मे फंसा हूँ और नाव डगमगाए
अब हम पर रहम कर दो हमको भी पार कर दो
ममता भरी नजर से कोई ना छूट पाए
मईया की महिमा को हम कैसे तुम्हे सुनाये
सुख सारा वो है पाता जो दर पे सर झुकाए
मईया की महिमा को हम कैसे तुम्हे सुनाये
सुख सारा वो है पाता जो दर पे सर झुकाए
bahut hi sradha ke sath ma ko pranam, aur aapko badhai is badiya kavita ke liye.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रार्थना
ReplyDeletejai mata di, maa ki mahima jitna bhi gaaye kam hai,sunder rahna . DEEPAK ji apka mail mila.
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