कभी तनहाइयों में तेरी बातें सोच हंस देता
डसी तनहाइयाँ हैं जब तो तनहा दिल है ये रोता
मोहब्बत के सफर में थी लिखी तनहाइयाँ ही जब
मोहब्बत करना तन्हाई से क्यूँ न तू सिखा देता
तेरे खातिर ही दुनिया से किया मैंने बगावत था
किया तूने भी अब तनहा और दुनिया से तो पहले था
मेरे खोने के खातिर काफी थी तेरी झील सी आँखें
हुई क्यूँ आज वो दरिया जो कल मेरा समन्दर था
मै सांसे ले नहीं सकता हूँ तुमसे दूर रह करके
काट पाऊ न इक भी क्षण बगावत तुमसे मै करके
ये दुनिया छोड़ने का फैसला भी ले नहीं सकता
कहीं तू ये न कह दे की मरा बदनाम मुझे करके
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