उम्र रपता तुम्हारे बिन अब हम कैसे गुजारेंगे
भुलाना भी जो चाहेंगे तब भी ना भूल पाएंगे
सजा कैसी दिया तुमने मुझे मेरी वफाई का
रहें महफ़िल में या तनहा तुम्हें ही बस पुकारेंगे
सुमन कोई खिला देखूं तो तुम ही याद आते हो
मेरी यादों में आकर के बहुत हमको सताते हो
किया रुसवा जमाने ने हमे तुमसे तुम्हें हमसे
सही ना जाए रुसवाई तुम्ही बस
याद आते हो
चांदनी रात में जब चाँद को हंसता हुआ देखूं
तुम्हारी याद आने से तो दिल को कैसे मै रोकूँ
समन्दर में उठी लहरें मुझे भरमा रहीं हैं अब
खडा मै हूँ किनारे पर मगर जल में तुझे देखूं
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ReplyDeleteबहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
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