कब तक ऑंखें ही नाम करके हम शांत हो
क्या हमे जीने का हक नहीं है यहाँ
क्यूँ नहीं सुन रहा कोई आवाज को
बोलने का हक हमे क्या नहीं है यहाँ
कल पढ़ा था हर कोई यहाँ आजाद है
था जहाँ ये लिखा वो संविधान है कहाँ
बोलने की सजा अब तो मौत मिल रही
न्यायदाता धरा से गए अब कहाँ
दर्द माँ के शहीदों का वो जाने क्या
जिसने गीदड ही पैदा किये है यहाँ
लाल अपना जो खोते तो वो जानते
लाल खोके माँ कैसे है ज़िंदा यहाँ
क्या हमे जीने का हक नहीं है यहाँ
क्यूँ नहीं सुन रहा कोई आवाज को
बोलने का हक हमे क्या नहीं है यहाँ
कल पढ़ा था हर कोई यहाँ आजाद है
था जहाँ ये लिखा वो संविधान है कहाँ
बोलने की सजा अब तो मौत मिल रही
न्यायदाता धरा से गए अब कहाँ
दर्द माँ के शहीदों का वो जाने क्या
जिसने गीदड ही पैदा किये है यहाँ
लाल अपना जो खोते तो वो जानते
लाल खोके माँ कैसे है ज़िंदा यहाँ
दीपक जी भावनात्मक रचना .......सुंदर रचना
ReplyDeleteदर्द माँ के शहीदों का वो जाने क्या
ReplyDeleteजिसने गीदड ही पैदा किये है यहाँ
यहा गीदडो की ही सरकार है और उनका मुखिया वो असरदार मन्नू और आऊल है
लाल अपना जो खोते तो वो जानते
ReplyDeleteलाल खोके माँ कैसे है ज़िंदा यहाँ
nice post.
ReplyDeleteदर्द माँ के शहीदों का वो जाने क्या
ReplyDeleteजिसने गीदड ही पैदा किये है यहाँ
लाल अपना जो खोते तो वो जानते
लाल खोके माँ कैसे है ज़िंदा यहाँ
...............आपकी रचना सोचने को बाध्य करती है कि जमाना इतना क्यों बदल गया है?
सुंदर शब्दों में जज्बातोँ को उकेरा......बेहतरीन रचना
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