प्रिया कि प्रीति में हमने सजा क्या खूब पाई है
मिलन इक पल का था केवल और लंबी जुदाई है
रूमानी गीत मेरे लब अगर छेड़े तो ये समझो
प्रिया की प्यारी सूरत दिल में मेरे ली अंगडाई है
प्रिया की प्रीति में जब भी मै कोई रात जगता हूँ
तभी उस रात की तन्हाई पर कविता मै करता हूँ
कोई सुनना जो चाहे इन तरानों का मेरे कारण
तो बस दिल से जुदाई को ही मै कारण समझता हूँ
तराने है मेरे तुमसे तरानों में मेरे हो तुम
मेरी आवाज है तुमसे मेरी आवाज में हो तुम
मोह्ब्बत है मुझे तुमसे और मेरी मोहब्बत तुम
दिलों में हो हमेशा तुम ठीक हो गर समझ लो तुम
wel written,,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteसब कुछ तो कह दिया है .............
Delete